Monday, November 16, 2015

बारिश भिंगोती रही
वो भीगती रही मुझसे होकर
में भींगता रहा उसके साथ एक छाते के नीचे
बूंदे स्मृति बन सिमटती रही हमारे मध्य
मिटाती रही हमारे बीच की दूरिया
खोलती रही हमारे मध्य के बंधन
जोड़ती रही हमारे मन
बारिश जब रुकी
तो वहा से गए सिर्फ दो बदन

कृते अंकेश
Little ant came to my room
To have its pie of cake
Not from rack, but from hair
If it can manage to take
Its b'day bash, went little rash
All faces washed with cake
Tinder tide, brain boost bright
Muddling through hairy waves
Oh you find the sin of sign
Dream of paramountal stage
Let the time jump the line
Or worse could be in the plate

Ankesh
मुझे समेट लेना
दर्द के निरीह कौनो से आघातों के भीतर
व्यथा की वेदना बनकर पीड़ा बरसती रही मुझमें
मिटा सको तो मिटा देना यादों के अंतिम निशान मेरी स्मृति में
मैं इंतजार करूँगा तुम्हारा
स्मृति के धुंधला होने तक

कृते अंकेश
A silent force
may not always drive you to the shore
because shore is not the place
where your mind lies
you may want to touch the sky
limitless sky
only few has drove that high
It pulls you, pushes you and sends you beyond what It has seen
to bring the story unseen
Time
is what I am seeing now:
sleep is a miss, work is a bliss
today is Sunday
and nobody knows what will happen on Monday. "
में हिन्दी हूँ
मुझसे निकली जाने कितनी गाथाएँ
कितने शब्दों ने आकर मुझमें ली पनाहे
रूप रंग या क्षेत्रवाद से रही नही में कभी बंधी
जिसने मुझको जैसे बोला
उनके शब्दों में जा मिली
कहते है जो अशुद्ध हो चुकी आज हमारी हिन्दी हैं
नहीं समझते है लेकिन वो हिन्दी रही बदलती है
अस्पताल भी हिन्दी हैं और चाऊमीन भी हिन्दी हैं मेकडोनाल्ड का पिज्जा बरगर भी अब पूरा हिन्दी हैं
हिन्दी हिन्द की भाषा है हर शब्द हिन्द का हिन्दी हैं
चाहे लगे वो तमिल देखने में या चाहे वो सिन्धी हैं

कृते अंकेश
What if the word has never traveled
what if the expressions were only in mind
what if the feeling has long departed
what if the love has no sign
what if jay loved rashi
what if rashi had a crush on sameer
what if sameer had loved nidhi
who had gone for shopping with uday and married him last week
In the mustered world of insignificance
silence has no crown
what else I can say than that never happened in this town

Ankesh
जब थक जाओ
दुनिया भर की मुश्किल जब अपना कद लम्बा कर आ सामने विकराल रूप में डट जाये
पथ नहीं दिखे, उम्मीद छिपे, स्वेद तुम्हारा पानी बन धरती में जा चुपचाप मिले
प्रहरी जग के जब सोये रहे, सुख के सब क्षण जब खोये रहे
उस पल का अंतर तय करता
जो डटा रहा वह जीत गया
जो हटा नहीं वह जीत गया
जो थका मगर नहीं वह जीत गया

कृते अंकेश
Three decades before
on a pleasant Sunday
when day and night were equal
weather was nice
temperature was in the range of 24 to 32 degree Celsius
I found a company of my dear brother
and came in this adventurous world
to my surprise
that was the sweetest point
and after that night became longer and colder and the day was shorter
and then my brother brought the warmth of his life and gave me a smile
Within six month there was another time
when day was again as long as was night
and weather was again equally pleasant and nice
I think nature counted both of our age and repeated the year in six months time

By Ankesh (22/09/2015)
कलम कमल से शने: शने: दूर जा रही
रह रह कर अख़बारो में यही आवाज़ गुनगुना रही
सहिष्णु नहीं रहा समाज
दे सरकार जबाब
मौन, स्वीकृति या अस्वीकृति
समर्थन या विरोध
प्रश्न नहीं यह सब
उत्तरदायित्व है सत्ता का
निराशंकित रहे प्रत्येक जन
कृते अंकेश
My grief is no smaller, no larger than the absence of yours
A shread of time, pebble of sign had missed its shores
when I had walked through you and brought the love
Nothing has been said about those times
Distance talks the matter of frost
when there is no sunshine
Those who know the weather of dark
may take another street
I took the one which goes to you
and none was there to greet

Ankesh Jain
Those tiny transistors
beyond my computer screen
when got arranged in a microchip
having design of my dream
and started pulsating with a pattern of zeros and ones
I can only tell
nothing is more exciting than viewing those patterns

Ankesh Jain
ढूंढती है सुबह किनारा
किस तरफ है उसको जाना
रास्ता नहीं जाना पहचाना
मिलती क्षितिज से भोर बनकर
रंग अपना नभ में भरकर
चहचहाटो से संवर कर
स्वप्न को देती बहाना
किस तरफ है उसको जाना

कल मिली थी है नहीं वो
आज की सुबह अधूरी
रात के साये में छिपकर
बह गयी वो बात पूरी
खोलना है आज फिर से
दिन को अपना यह खजाना
देखना जीवन की सुबह को
अब किस तरफ है जाना
कृते अंकेश
अधूरा वतन मेरा दर्द समझेगा कैसे
एक हिस्सा दर्द से तड़पे
एक हिस्सा देखे उसे नीची नजर से
मुझे मिट्टी यही मिली जीने के लिए
हवेली न सही झोपडी यही मिली आंसू पीने के लिए
मैंने माना यही है मेरा वतन
फिर क्यो तड़पता है मेरा मन
झुलसता है आग में अपनो के हाथो
वोटो में बटता है जीतता है या हारता है
जब जो चाहता है मेरी किस्मत को मारता है
अधूरा वतन मेरा दर्द समझेगा कैसे

कृते अंकेश
पिघल दुपहरी बहती जाए
नीर नयन नभ में लहराये
जग जल से जलता ही जाए
विस्मित चातक पंख उड़ाये
कृते अंकेश
तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है
जो तुम चाहो तो मिल जाओ
जो तुम चाहो तो घुल जाओ
बरसती रात की चादर
या ओढे जुल्फ का बादल
समेटे नींद आँखो में
उतर सपनो में छा जाओ 
तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है
अँधेरा देर तक कैसे
छिपाएगा जो अंदर है
नहीं जजवात है थोड़े
भरा पूरा समुन्दर है
खयालो की ही कश्ती में
कभी इस तीर तक आओ
जो फिर चाहो तो मिल जाओ
जो फिर चाहो तो घुल जाओ
तुम्हे मुझ तक पिघलने से
यहाँ किसने ही रोका है

कृते अंकेश

Wednesday, November 26, 2014

मेरी मंगलमय मुस्कान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
जा मंगल पर दूत यह अपना
ढूढ़ने लगा जीवन का निशान
बधाइयाँ
पथ कितने, रथ कितने, कितने महल बना लो
चाहो तो अगणित वैभव का अम्बार लगा लो
जब न्याय का शंख बजेगा लुटा हुआ पाओगे
देख फसे सारे मोहरे चेस्ट पैन ही लाओगे
अंकेश
मन के अक्षर तुमसे जुड़कर न जाने अब किस ओर चलेंगे
समझायें कोई इनको मतलब, रस्ते हैं बड़े, कदमो से चलेंगे
कृते अंकेश
मन चंचल सा एक कोना हैं
मन मेरा एक खिलौना हैं
मन दूर हुआ कब तुझसे था
मन को तुझमें ही आ खोना हैं
कृते अंकेश
मन किस प्रहर के गीत गाये अनसुने
मन इस शहर को छोड़ जाए बिन रुके
मन पक्षियो के पंख लेकर जा उड़े
मन तेरे घर की झुरमुटो में जा छिपे
मन ढूंढता वह शाम जिसमे थी तू रही
मन सोचता है रात वो थी क्यो ढली
मन उड़ता है फिर फिर उस पल के लिए
मन जुड़ता है जाकर वो सपना जिए

कृते अंकेश
तन तेरा पंझी
मन मेरा उड़ता
दूर गगन में बादल बनकर पास तेरे जुड़ता
तन तेरा पंझी
सपनो को लेकर अपने अंक में उड़ चल तू
रात अधेरी डरना कैसा
साथ में हर पल हूँ
तन तेरा पंझी
किसने देखा जग यह
कितना और बड़ा
साथ में तेरे चलू वहाँ पर, पथ जहाँ लिये चला
तन तेरा पंझी

कृते अंकेश
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
भींगे सारे सपने मेरे, अंखिया अंसुओ से सवारें
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
रूठकर चल दी दुपहरी, रात का आँगन घिरा है
तोड़कर खुशिया सुनहरी, कोई सपना ले गया है
मन पहर को ढूंढकर, कैसे समय वह बाँध डाले
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें

उड़ रही बातें पुरानी या कोई उनको फिर कह रहा है
दर्द अंखियो से पिघलकर या कही फिर बह रहा है
तम के बहाने रात ने भी सम्बन्ध सारे तोड़ डालें
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
कृते अंकेश
देखा एक उफनता दड़बा
काठ की खटिया
हाड़ का पुतला
कागज, रद्दी, ढेर था सारा
गिरा कही न उठा दोबारा
स्याही के छीटो में छिपकर
मानव काया रही बिखरती
आज वहा पर अाकर दुनिया
कवि के घर को देखा करती

कृते अंकेश
टूटकर बहता था आंसू
रूठकर कहता था आंसू
रात ने मुझको अकेला आज जाने को कहा है
फिर से मुझको और थोड़ा मुस्कुराने को कहा है
कृते अंकेश
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे
रात उसकी हैं अधूरी
ख्वाब उसके हैं अधूरे
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे
जोड़कर फूलों की माला
उसने पथ को था सजाया
और परागो से चुराकर
सौरभ गंध भी डाल आया
फिर पथिक ने क्यों न आकर
थे कहे कुछ शब्द धीरे
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे

कृते अंकेश
रेतो में फसकर पैर से उलझे
बने किले हाथो से छलके
आसान था कितना पल
जब थे सारे सपने चंचल
बस हाथो को था फैलाना
और सपनो में जाकर उड़ जाना
उछल कूंद मस्ती वो सारी
होती बड़े बड़ो पर भारी
न जाने गया कब फिसल
मेरे जीवन से वो बचपन

कृते अंकेश
फिर क्यों न कहें परिजन वनिता
शब्दों के सहज अनुगामी विरल
अवधि होती हैं अल्प तरल
समता होती है अति सरल
बहते क्यों हैं संदेशों में
तकते क्यों हैं अनुदेशों में
रखते क्यों हैं स्वभाव विकल
जुड़ता हैं संशय बन विह्वल

कृते अंकेश

मौन अभिव्यक्ति है आँसू की
आँसू मौन की नही
कृते अंकेश
शर्म क्या है आंसुओ में
क्यो भला उनको छिपाना
मेरी कविता ने पिरोया
बदला है उनका ठिकाना
ढूंढती है दर्द को भी
यह कलम जाकर जड़ो में
टूट मुरझाया गिरा क्यो
फूल इनको खोज लाना

कृते अंकेश
दीपक बन जगमग जग कर दो
झोली सबकी खुशियों से भर दो
अन्धकार अज्ञान को हर कर
ज्ञान प्रकाश से जग को भर दो
तोड़ विषमता की दीवारे
समरस सरल यह जीवन कर दो
हर पीड़ा दुर्बल तन मन की
जग ज्योति को जगमग कर दो

कृते अंकेश
मेघ बरसे हो अभी क्यों
जग यहाँ सोया हुआ
कौन जाने ख्वाब में किस
अब यहाँ खोया हुआ
रात बनकर एक सहेली
करती रहीं बाते देर तक
पास आया जब सवेरा
चल पड़ी आँखें फेर कर
नीद ही बस अब ठिकाना
साथ इनका खोया हुआ
मेघ बरसे हो अभी क्यों
जग यहाँ सोया हुआ

कृते अंकेश
शहर की झोपड़िया सन्नाटे को समेट लेती है, इनमे लगी कंक्रीट बड़ी सख्त होती है जिसके आर पार रिश्ते बमुश्किल ही गुज़रते है (Ankesh)
मिलन अकस्मात् होता है लेकिन पहचान नहीं
पहचान अत्यत्न जटिल प्रक्रिया है
ऊहापोह मन की शब्दो में घुलती जाती है समय के साथ
लोग उभरते है मन पर
शीशे पर जमी हुई कोहरे की भाप की तरह
कोहरा हल्का या गहरा
पानी बनकर ऊँगली पर छा जाता है
चाहो तो सम्भालो और न चाहो तो बहा दो
वरना पहचानने के लिए तो उम्र भी कम है

कृते अंकेश
तुमसे प्यार करना स्वप्न से प्रणय करना था
जहा सिर्फ जीवन भर लम्बा इंतज़ार पनपता है
आज भी अँधेरा तुम्हारी अनुपस्थिति का एहसास नहीं कराता
Ankesh Jain
तुम्हारा प्रेम कांच की तरह था
स्पष्ट
जहा कुछ छिपाया नहीं जा सकता
लेकिन यह जब टूटा तो कांच की ही तरह टुकड़े बन बिखर गया
चुभते हुए यह टुकड़े दर्द देते है
हर एक टुकड़े में तुम्हारी ही तस्वीर लिए

कृते अंकेश
कुछ शब्द बस इंतजार करते रह जाते है
होठो के बीच फसकर
यदा कदा आँखें उनमें से कुछ को बाहर निकालती तो है
लेकिन यह भाषा मुश्किल से ही किसी को समझ आती हैं
लोग यहाँ मौन को पढ़ना भूल चुके है
जीवन के शोर में
और कुछ शब्द बस इंतजार करते रह जाते है

कृते अंकेश
प्रेम कुछ ढाचो या कुछ शब्दो में सीमित रह जाने वाली चीज़ नही
न ही यह कुछ चिठ्ठियो में सिमट पाता हैं
कुछ शामे इसे अपने इर्द गिर्द पाती तो जरूर हैं
लेकिन रात के अंधेरे में बहकर यह कही दूर निकल जाता हैं
कृते अंकेश
कोई न छेड़े समय को
इसकी है उलझन निराली
ढूंढा मिला न कही पर
रहता था जहा वक़्त खाली
कृते अंकेश
हर ज़िंदगी तीन पहलुओ में बटी होती है
सोशल, पर्सनल और सीक्रेट
सोशल वह हिस्सा है
जिसे आप देख सकते है
पर्सनल वह हिस्सा है
जो आपको दिखाया जा सकता है
सीक्रेट इन हिस्सो से बचा हुआ वह अंश है
जिसमे पहुचना बेवजह आफत को मोल लेना है
यही तो वजह है कि इसको छिपाया है

कृते अंकेश
जिसे प्रदर्शन की आवश्यकता पड़े
वह प्रेम नहीं है
प्रेम मौन में भी हो सकता है
प्रेम विध्वंश में भी
प्रेम सभ्यता के साथ हो सकता है
प्रेम समाज के विरूद्ध भी
प्रेम अनोखा भी हो सकता है
प्रेम सरल भी
लेकिन जिसे प्रदर्शन की आवश्यकता पड़े
वह प्रेम नहीं है

कृते अंकेश
कहानी अधूरी ही रह जाती
अगर तुम छोड़ देते सपनो को सिरहाने
उबलते रहने के लिये हमेशा
मिट्टी में पड़े निशान
आवाज है तुम्हारे कदमो के जाने की
सुनता हू में आज भी
इनका सूनापन

कृते अंकेश
मन भ्रमर मत मान कहना
चंद्र चंचल चितवनो से
है भला बस चुप ही रहना
मन भ्रमर मत मान कहना
रश्मि किरणें भाल पर सज
बेधती जाती ह्रदय को
केश घुघराले घटा घिर
छेड़ती जाती प्रलय को
देख इनके जाल मे
अब नही तुझको है बहना
मन भ्रमर मत मान कहना

कृते अंकेश
भावनाए मनुष्य में जन्मजात होती है
हार्मोन्स का फ्लो इन्हे एपीटौम पर ले जाता है
बच्चे भावनाओ की क्षणभंगिमा एवं निश्छलता का सजीव उदहारण है
आँखो के आंसू कब मुस्कान में बदल जाये पता ही नहीं चलता
उनकी मेमोरी पूर्ण विकसित नहीं होती
इसलिए वह अपने से छल नहीं कर पाते
इसीलिए भावनाओ का प्रदर्शन सभ्य समाज में बचपने के नाम से जाना जाता है
विकास के क्रम में हम भावनाओ का दमन करते है
और एक निष्ठुर ह्रदय बन जाते है

कृते अंकेश

Thursday, September 18, 2014

अगर आसान ही हो ज़िंदगी, तो क्या मज़ा है जीने में
और भला क्या वो मोहब्बत, जहाँ दर्द मिले न सीने में

कृते अंकेश
कच्चे से धागे है
शाखो से जुड़ते है
लिखते है अपनी कहानी
कैसे शुरू होती
कोई न जाने
यारी हो कितनी पुरानी
लड़ते झगड़ते है
मिलते बिछुड़ते है
बनती सवरती निशानी
बचपन ही सजता
संग यारो में हसता
चाहे हो बीती जवानी

कृते अंकेश
बारात

बारात बस पहुचने ही वाली थी, सारे यार दोस्त जम के नाच रहे थे। पांच मीटर की दूरी एक आध घंटे में तय हो रही थी। बैंड भी अपनी पूरी शोहरत बिखेरने में लगा हुआ था । हुड़दंग अपनी चरम सीमा पर था। गानो की फरमाइशें की जा रही थी और बैंड वाला गायक एक साथ किशोर, रफ़ी, कुमार शानू बना हुआ एक ही सुर में सभी गानो को गाये जा रहा था। लोग इतने बेसुध थे कि कोई अगर मैयत का राग भी छेड़ दे, तो वह उस पर भी नाच दे। शादी के मंडप का दरवाजा अब सामने ही दिख रहा था। उधर की तरफ के कुछ लोग भी नृत्य दर्शन करने आ गए थे। भारतीय बारातो में होने वाला यह नृत्य दर्शन अभिनय की चरम सीमा होता है। नृत्य न जानने वाले भी भरे बाज़ार में असंख्य लोगो के बीच इतने विश्वास नृत्य करे, यह भला मज़ाक थोड़े ही है।

इन सब के बीच मेरी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। माना नृत्य देखकर मुझे भी मजा आता है, मैंने भी कई शादियो में ऐसे ही नृत्य किया है, लेकिन जब खुद पर आती है, तब पता चलता है। आज यह नृत्य देख मुझे ऐसा लगने लगा मानो किसी ने व्यंजनो की दुकान के आगे खड़ा करके हाथ पैर बाँध दिए हो। लेकिन जब आदमी कुछ नहीं कर पाता है, तब वह परोपकारी बनने का प्रयत्न करता है। मैंने भी मान लिया कि दूसरो की ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है। में भी दोस्तो के नृत्य को देखकर आनंद का अनुभव करने लगा।

गाने एक एक कर बदलते जा रहे थे, लोग नाच नाच कर पसीना हो गए थे, बारात लगभग थम ही गयी थी, घोड़ी भी अब स्थिर होकर नृत्य देख रही थी, कि तभी अचानक गाने की आवाज़ में ब्रेक लग गया। हेलो, टेस्टिंग, - बन, टू ,थ्री, शायद एम्पलीफायर में खराबी आ गयी थी। दोस्त लोग बैंड वाले पर भड़कने लगे, यह क्या बात हुई, अभी तो मूड में आने वाले थे और अभी गाना बंद कर दिया। बैंड वाला तुरंत जाकर वैद्युत उपकरणो को देखने लगा, लेकिन उसकी मनोदशा को देखकर पता चलता था कि उसे कुछ नहीं पता। लड़की के पिताजी भी आ पहुंचे थे और यह भानकर कि कुछ गड़बड़ हुई है, जायजा लेने में लगे हुए थे कि तभी किसी ने बोला, अरे मिंकू तो इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है न, उधर घोड़ी पर क्या बैठे हो, इधर आओ और एम्पलीफायर सही करो।एक तो तुम्हारी शादी में फ्री में डांस कर रहे है और तुम मज़ा भी बिना मेहनत के वसूलना चाहते हो।

अभी कुछ देर पहले तक जो निगाहे उस नृत्य मंडली पर थी, वो अचानक से मेरे ऊपर आ टिकी, मरता क्या न करता, में उतरने लगा कि तभी कोई बोला, हाँ हाँ, पता भी तो कर ले कि यह इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है भी या नहीं, वरना बाद में पता चला ऐसे ही किसी को अपनी लड़की दे दी। मुझे गुस्सा तो बहुत आया, पर कहते है न, कि समझदारी इसी में है कि गुस्से पर काबू रखो, आखिर शादी तो मेरी ही है न, उनका क्या बिगड़ेगा अगर कुछ उल्टा सीधा हो गया, यह सोचकर में बैंड के उपकरणो की तरफ चलने लगा।

सभी लोग मेरी ओर देख रहे थे, मेरे माता पिता उम्मीदो के साथ, भाई होसला बढ़ाते हुए, पडोसी कपटी मुस्कान के साथ और लड़की के पिता शक भरी निगाहो से। एक तो यह एम्पलीफायर न जाने किस कबाड़ से निकाला हुआ था, किसी पुराने उपकरण को जोड़कर गाने वाली मशीन बना दी और अब मुझे थमाकर बोला जा रहा है, या तो मशीन को पहले जैसा करो वरना बोलो की तुम इंजीनियर नहीं हो और शादी, उसके बारे में तो में सोच ही नहीं पा रहा था।

मैंने वहा तारो को देखना शुरू किया, मैंने बैंड वाले से पूछा, मल्टीमीटर है? वह आश्चर्य से मेरी ओर देखकर बोला, नहीं हम पियानो से ही काम चला लेते है। तभी कोई रिश्तेदार बोला, अरे अब तुम जो है उसी को सही कर दो न, क्या इजूल फिजूल की चीज़े मांगने में लगे हो।

कहते है जब मुसीबत आती है, छप्पर फाड़ के आती है। बीच सड़क पर आपकी क्वालिफिकेशन का परिक्षण आपको ऐसे लोगो को देना है, जिन्हे कुछ ज्ञान नहीं और आपका इंजीनियर होना या न होना बस अब एम्पलीफायर के बापिस बजने तक सीमित है।

मुझे ज्ञान का महत्व पता है लेकिन ज्ञान को प्रमाणित करने का गुर शायद मेरे गुरु मुझे सिखाना भूल गए थे।

तभी अचानक से बूंदाबांदी शुरू हुई और देखते ही देखते बारिश होने लगी। सभी लोग दौड़कर मंडप की ओर जाने लगे। मेरे होने वाले ससुर मुझे चलने का इशारा कर रहे थे। में तो उम्मीद ही छोड़ बैठा था लेकिन लगता है भगवान ने मेरी इज़्ज़त रख ली।

कृते अंकेश।

© सर्वाधिकार सुरक्षित
कुछ उखड़े पंख सही
कुछ बिखरे रंग सही
कुछ ही सांसें काफी है
मन में उम्मीद जो बाकी हैं

कृते अंकेश
तुम्हारी घड़ी में
समय की सुईया कसी हुई है एक केंद्र में
फिर से आ जाता है वही समय बार बार तुम्हारे पास
मेरी घड़ी टूट चुकी है
समय मुक्त बहता है मेरे लिए
में नहीं रो सकता बीते हुए समय के लिए
वह नहीं आएगा लौटकर मेरे पास
मेरा भविष्य मेरे वर्तमान से पूर्णतया मुक्त है
मेरा समय आज़ाद है

कृते अंकेश
मेघ जरा अपनी अखियो को
जल में थोड़ा और उतारो
मन के सारे भेद निकालो
जग को तुम जल से भर डालो

सुबह तुमसे पूछ रही है
रात अधेरी किधर गयी है
लेकर किसका खत यह अधूरा
रवि की किरणें बरस रही हैं

तोड़ कर इन रस्मो की चादर
मन को थोड़ा और उतारो
मेघ जरा अपनी अखियो को
जल में थोड़ा और उतारो

कृते अंकेश
मायूसी तुम्हें किसका इंतजार हैं
चेहरे तुम्हें ओढ़कर बिखरे हुए है
फिर किसके लिए तुम्हारा दिल बेकरार हैं
मेरी मुस्कान तुम्हारी इज्जत करती हैं
इसीलिए यदा कदा वो चेहरे पर सवरती हैं
छोड़कर तुम्हारी संगत अब तो यह काया भी सांस न लिया करती है
लगता हैं जैसे इसको तुमसे ही प्यार हैं
मायूसी सच कहो तुम्हें किसका इंतजार हैं

कृते अंकेश
यु तो मौन भी एक बड़ी स्वीकृति है
विरोध में निहित सांकेतिक प्रवृत्ति है
स्वर लेकिन सजाते है विषय मौन का
वाणी से पिरोते है विस्तार व्योम सा
निकली ध्वनि जो मुख से थी पहली
भाषा वो मेरी है सर्वप्रिय सहेली
अब तन चाहे कितने ही गोते लगाये
मर्म मन का मातृ भाषा में ही आए

कृते अंकेश
प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है
जीने का अधिकार कहाँ  है
नाच रही बस काया मेरी
बोलो इसका सत्कार कहाँ है

मेरा खोया प्यार कहाँ है
खुशियो का संसार कहाँ है
ढूंढ रही है अँखियाँ जिसको
वो जीवन का आधार कहाँ है

प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है

में बावरी बनकर भटकी
जीवन स्थिरता को खोजा
चंचल मन था रहा भटकता
मिला न कोई जिसने रोका

कह दूँ अंतर्मन की पीड़ा
ऐसे पल का व्यापार कहाँ है
रख दूँ अपने मर्म का हीरा
बोलो ऐसा संसार कहाँ है

प्रियवर मेरा श्रृंगार कहाँ  है

कृते अंकेश

Wednesday, July 02, 2014

रात भर जला शहर यू अपनी आग में
ढूंढती थी फिर सुबह क्या बचा है राख में
बनकर हवा थी उड़ गयी, रुप, वैभव और छवि
कोयलों के ढेर में आखो की नमी शायद बची
संभोग मे रत अस्थिया, गिद्दो की चौचो की नौकपर
क्षण में बदला हैं शहर, क्षणभंगुरता को छोड़कर

कृते अंकेश
"पीजा" एक बहुतायत से मिलने वाला एवं आसानी से खाया जा सकने वाला भोज्य पदार्थ है, पीज़ा आलसियो के लिए सर्वोचित भोज्य पदार्थ है, जहा समस्त भोज्य सामग्रियो को एक साथ पका कर दे दिया जाता है ताकि आपको अनुचित प्रयत्न नहीं करने पड़े , वैसे पीज़ा को इसके नाम के अनुरूप पीया नहीं वरन खाया जाता है, यह विरोधाभास इसके विदेशी नाम को यथावत हिंदी भाषा में सम्मिलित करने के कारण हुआ है , वैसे भी इससे खाने वालो को क्या फर्क पड़ता है कि नाम क्या है? और रही बात इसे खाने वालो की, तो आलसी लोग खाने का प्रयत्न कर रहे है, वही काफी है, हालाँकि बहुत से लोग इसे गले से नीचे उतारने के लिए शीत पेय पदार्थो का सहारा लेते है, जिसे देखकर संदेह होता है की कही वह इसके नाम पाश में तो नहीं फस गए है?

अंकेश जैन
Time is like a diode,
which restricts its flow in one direction
but like a real diode,
which however good it is
can allow some current to flow in the reverse direction
Similarly time for some of its entity
however strong they are
can sometime travels back through memories

Ankesh Jain



समय एक डायोड की तरह है
जो केवल एक दिशा में चलता है
पर जैसे एक वास्तविक डायोड में कुछ न कुछ रिवर्स करेंट बहती है
उसी तरह यादें हमें समय की धुरी पर फिर से अतीत में ले जाती है
हालांकि यह कमज़ोर होती है
और कभी कभी ही अपना प्रभाव दिखाती है

कृते अंकेश
गम की हिफाजत करो
यह हुनर बन कर छा जायेगा
पिघल आँसू बहा दोगे जो इसे
यह जीना भी व्यर्थ चला जाएगा

कृते अंकेश
इश्क अगर मुझको तुम तक ले जाये, तो अच्छा है
इश्क़ मगर अश्को में बहकर न आये, तो अच्छा है

कृते अंकेश
If the mountains are the biggest slice on earth's cake
Rivers are the nature's knife cutting its cake
And taking the soils to the plain
So that people can grow their grain
This feat is enjoyed by all
Sharing is a joy afterall

Ankesh
घनन घनन घिर घुमड़ घुमड़ घर घाट घने घुमड़त घुमड़त
बदरा बदलो बदकिस्मत, बेहकत बैचैन बना बालक बरवस
पवन प्यार पाती पत्तर, पत्तो पर पड़ता पानी पट पट
झड़ झंझावत झाड़ी झुरमुट झड़ झील झड़त झटपट झटपट

कृते अंकेश
कभी उलझकर मुझमे, कभी बिखरकर मेरे बिस्तर पर
कभी समेटकर मेरी पहचान को खुद में
मेरी आत्मा का निशान हो तुम
मेरे तन के प्रेमी ओ मेरे कपडे
मेरी भी जान हो तुम
तुमने ही जाना है मुझको
इतनी नजदीकी से
बिखरे हो तुम आकर मुझ पर
जब बिखरा में जिंदगी से
भूल थी मेरी जो ठुकराया तुमको
फिर भी तुमने अपनाया
झूमे थे तुम साथ ख़ुशी में
दुःख में आ अपनी बाहो में छिपाया
तुझ में छिपकर ही अब मेरी पहचान यहाँ है
ओ प्रिय नग्न मेरी देह तुझ बिन
इसका अभिमान कहा है

कृते अंकेश
हर बीता हुआ पल कुछ कह देता है
और छूटा हुआ प्रेम भय देता है
सपने अक्सर उलझते है, टूटते है
छूटते है रूठते है
रूठे हुए सपनो को जग सह लेता है
लेकिन छूटा हुआ प्रेम भय देता है
संगीत के तरानो पर
समय के फसानो पर
दोस्ती के अफसानो पर
मन अपनी उलझनो को कह देता है
लेकिन छूटा हुआ प्रेम भय देता है

कृते अंकेश
कविता लयबध्द हो
जरूरी नहीं तोड़कर बढ़ सकती है अक्षरो एवं मात्राओ की गिनती
एक विषय पर ही रहे जरूरी नहीं
बदल सकती है अचानक
जैसे प्रेमिका का इंतज़ार करता प्रेमी कल्पना करता है
उसके आने की, न आने की
यह कल्पना ही उसकी कविता है
बीतता हुआ समय उसके शब्द है
विश्व एक मंच और आते जाते लोग श्रोतागण
कविता तो स्वरो की साधना है
प्रार्थना है यह लेखक की
पूजा है कवि की
है कुछ अक्षरो का क्रम उसके लिए
जिसने नहीं जानी कभी इसकी हस्ती

कृते अंकेश
आँखे जिसे देखती है
परखती है, अपनाती है
उसकी ही होकर रह जाती है

कृते अंकेश
नीद अमीरो की दुनिया की जागीर नहीं होती
मिलती उसको भी जिसके सर छत नहीं होती
क्यो न भूख को भी हम ऐसी आज़ादी दिलवाएं
बिना भेद भाव के भोजन सब तक पहुचाएं
मनुज नहीं पाता है जीवन केवल क्षुदा को हरने को
खो देता है लेकिन जीवन भूख से लड़ने को
इस अनियंत्रित क्रम पर क्यो न कुछ तो रोक लगाये
बिना भेद भाव के भोजन सब तक पहुचाएं

कृते अंकेश
प्यार भी एक खेल है

प्यार भी फुटबाल की तरह होता है
एग्रेसिव स्ट्राइकर तुरंत स्ट्राइक लेते है
गोल करते हैं, चले जाते है
डिफेंडर या गोलकीपर जो खेल को बचाने की कोशिश में लगे रहते है
आखिर में गोल खा ही जाते है
और नासमझ दुनिया सिर्फ गोलो को गिनती है

कृते अंकेश

Sunday, June 01, 2014


हम न जाने कब बड़े हुए, आ दूर घरो से खडे हुए
माँ तेरे आंचल सा लेकिन, नभ मैं है विस्तार कहा
मिलती होगी दौलत और शोहरत, पर तेरे जैसा प्यार कहा

कृते अंकेश

शब्द बिखरते रहे
गिरते रहे जमीन पर
बेसुध, बेहोश
भीड़ से भरे भवन में कवि के निशान मिटते गए
दूर वीराने में
कोई लिखता है
शब्दो को चुन कर
पिरोता है अक्षर से मोती छंदो में बुनकर
सजती है कविता उन पन्नो पर

कृते अंकेश
जल गया इश्क़
यादो की राख रह गयी

कृते अंकेश
युद्द एक आतिथ्य है
दुश्मन के सम्मान का
है एक प्रयोजन यह
भोज्य विषपान का
प्रेमवश योद्धा अरि स्वागत
करे अस्त्र शस्त्र से
मृत्यु भी आज हुई व्यस्त
जीवन के इस नृत्य से

कृते अंकेश

मौन सदा था तेरा उत्तर
लिखते थे तुम इंतजार
मुझे सिखाया समय ने लेकिन
तुमको बस करना ही प्यार

कृते अंकेश
जाओ तुम, ले जा सके जहा, तुमको यह आकाश
मुझको है विश्वास
मिलूंगा कही वहा ही पास
जहा होगा तेरा आवास
समय सजा ले अब चाहे फिर कितने ही वनवास
रहोगे तुम्ही सदा ही ख़ास
रहो चाहे जिसके भी पास

कृते अंकेश
लोकतंत्र का पहरेदार
अब मोदी अपना सरदार
सभी पडोसी देश साथ में
बजा रहे है ताल से ताल

नहीं जोड़ तोड़ का धंधा
नहीं खरीद फरोख्त व्यापार
सीधे सीधे अपने दम पर
लो आ गयी अपनी सरकार

कृते अंकेश
लोग भूल जाते है
रिश्तो के धागो की उलझन खुल ही जाती है
घनघोर घटा हो काली सुबह फिर भी आती है
पल के आवेशो में अखिया व्यर्थ भिंगाते है
लोग भूल जाते है

कृते अंकेश
दर्द कवि को पाला करता
प्यार उसे बहकाता है
कवि को खुशिया कभी न देना
इनसे कवि मर जाता है

कृते अंकेश

"Why the decision has been made in this way"...

When I reached there, she was lying on the bed. Her eyes were closed. A long plastic tube carrying medicine and glucose was going all over her chest and injecting everything into a tiny blood vessel of her left hand.

Not every time those blood vessels can be seen so clearly, part of it had swollen and making itself more visible.

"I do not want to be here, will you please take me away", her voice was shivering with pain or fever but she was directly looking into my eyes.

Before I could say anything, doctor came and asked me to move out as they were going to do some more investigation. I saw her and came out.

I met her two years before in an art exhibition, though she was not a participant yet she was carrying an album. Its cover page was a portrait of a woman holding an umbrella which was closed and she was looking at the drops of rain falling over her body. I went to her and asked if I could see the album. She happily gave it to me. Her all sketches were centered around a person and as if asking why the decision had been made in this manner. I too showed her my work, It was a piece of glass carved into a shape of a woman holding a child in one hand and a mudpot in another hand. Suddenly the same question popped up in my mind, "why the decision has been made in this way". After this we have met few more times and shared our works and contact details. Since last one year she never came to any exhibition. I thought of calling her some times but the idea used to get slipped from my mind due to some or other reasons. It was today when I got a call from the hospitals that shruti one of their patient is wishing to see me.

Ankesh Jain

नेताजी क्या हाल हुआ है
देखो इस स्टेट का
बना हुआ है अड्डा यह क्यो
मर्डर और रपे का

कहा बनेगा उत्तम प्रदेश
क्या उत्तम मतलब उजड़ा है
देखो समय अभी भी बाकी
गणित अभी न बिगड़ा है

कुछ तो सोचो, कुछ तो समझो
जनता को न बहलाओ
लल्लू अगर नहीं है काबिल
खुद ही कुछ कर दिखलाओ

कृते अंकेश
खिड़किया समय के परदे होती है, यह बिना समय गवाए बाहरी दुनिया तक पहुचने का एक माध्यम है, खिड़कियो के सहारे ही हम अपने अपने घरो अथवा कार्यालयो में बैठे रहकर ही बाहरी दुनिया से सम्बन्ध स्थापित कर लेते है, खिड़किया हमें वह दिखाती है जो हम देखना चाहते है। यह द्वार नहीं है जिससे बाहर जाने पर आप पूरी तरह से एक दूसरी दुनिया में आ जाते है, खिड़कियाँ आपको दूसरी दुनिया तक लेकर तो जाती है, लेकिन बिलकुल चुपचाप, एकदम गोपनीय तरीके से, आप चाहे तो किसी भी समय खुद को एक झटके में फिर से पहली दुनिया में खीच सकते है , वस्तुत: आप कभी शारीरिक रूप से दूसरी दुनिया में जाते ही नहीं है बल्कि आपके दृश्य पटल पर दूसरी दुनिया के अभिदृश्यो को उकेरा जाता है, शायद इसीलिए खिड़कियो का खुलना ज्ञान की अभिवृद्वि का प्रतीक माना जाता है । खिड़किया चाहे दीवारो में हो, तन में हो अथवा मन में हो, इनका खुलना हमारे ज्ञान क्षेत्र को विस्तृत बनाता है । समय के साथ साथ यह खिड़कियाँ भी विकसित होती गयी, रेडियो, चलचित्र, दूरदर्शन, इंटरनेट आदि खिड़कियो के आधुनिक रूप है जो हमें विभिन्न प्रकारो से दूसरी, तीसरी एक अनेको दुनियाओं से जोड़ते रहते है

कृते अंकेश

मुझे पत्तो में खुशबुओ को बटोरने की आदत है, पत्ते स्वभाभिकत: खुशबू को नहीं संजोते है लेकिन पुष्प के सानिध्य में रहकर वह खुशबू के भी साथी हो जाते है, वैसे जरूरी भी तो नहीं पुष्प सभी के हिस्से में आये। इन पत्तो की महक पुष्प के मिलने से कही अधिक मादक होती है क्यूंकि पत्ते पुष्प की तरह क्षणभंगुर नहीं होते, यह एक लम्बा जीवन जीते है

कृते अंकेश

Wednesday, May 14, 2014



यह कविता अभी कुछ  पंक्तियो तक और चलेगी
जब तक कवि को नही मिलता एक शीर्षक
जिस पर लिख सके वह एक कविता
वैसे ऐसा नही है कि  कविताएँ शीर्षक  मिलने पर ही लिखी जाती हो
और वास्तविकता तो यह है की अधिकांशत: कवितायेँ शीर्षकविहीन ही होती है
जीवन की तरह
कौन जानता है अपने जीवन का शीर्षक
या अगर हम कुछ मान  भी लेते है तो कितना सटीक उतरता है वह शीर्षक जीवन पर
जीवन  तो जिया जाता है स्वछंद, अपनी ही धुन और अपने ही हिलोरो मैं
ठीक उसी तरह कवितायेँ भी बहती है  विचारो की गंगा में
शीर्षक के बंधनो  से परे
एक अन्त की ओर

कृते अंकेश

Tuesday, May 06, 2014


I equally enjoy conversation and silence
and feels as if both are my friends
conversations takes me to the world of others
while silence brings me to of my own

Ankesh